ढल गया जब शबाब से पानी
क्यूँ बहा तब नकाब से पानी
वक्त रहते अगर सँभल जाते
फिर न ढलता गुराब से पानी
इक छलावा है इश्क़ की दुनिया
कौन लाया सराब से पानी ??
तेरी आँखों में क्यूँ छलक आया?
आज मेरे जवाब से पानी
ये जो मोती रुके हैं पलकों पे
क्यूं है तेरे हिसाब से पानी?
उसकी रहमत पे शक नहीं करना
सबको देता हिसाब से पानी
उसकी ग़ज़लों में कौन शामिल है?
बह रहा क्यूँ किताब से पानी
ख़ार के साथ की सजा है ये
रिस रहा है गुलाब से पानी
कोशिशें बन्द होंगी तब मेरी
जब मिलेगा तुराब से पानी
उसका आना पवन लगे है यूँ
जैसे बरसे सहाब से पानी
✍️ डॉ पवन मिश्र
गुराब= मान-सम्मान
सराब= मृगतृष्णा
तुराब= जमीन
सहाब= बादल
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