आएंगे दिन ये याद अबीरो गुलाल के
चिठ्ठी के, गुल के, मखमली रेशम रुमाल के
दिल से जुड़ा है इसलिये चुभने का ख़ौफ़ है
रिश्ता ये कांच जैसा है रखना सँभाल के
क्या क्या लिखूं ग़ज़ल में बताए मुझे कोई
किस्से तमाम हैं तेरे हुस्नो जमाल के
कैसे यकीं दिलाएं तुम्हें चाहतों का हम
कह दो तो रख दें यार कलेजा निकाल के
पहलू में आके अब तो अता कर सुकूं मुझे
कब तक ये दिन बिताऊं मैं रंजो मलाल के
थोड़ा सा बाजुओं पे करो ऐतबार अब
कब तक करोगे फैसले सिक्के उछाल के
✍️ डॉ पवन मिश्र
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