Thursday, 21 April 2016

ग़ज़ल- मेरी यादों में ख्वाबों में


मेरी यादों में ख्वाबों में हर बात में।
छा गए इस तरह तुम ख़यालात में।।

चाँद भी है यहां और तारे भी हैं।
एक तू ही नहीं साथ इस रात में।।

कुछ भी हासिल न होगा सिवा ख़ाक के।
क्यों बढ़ाते हो बातें यूँ तुम बात में।।

कारवां में सियासत के शामिल जो हैं।
मिल ही जायेगा कुछ उनको खैरात में।।

फ़िक्र करना नहीं लोगों की बात का।
ऐसे मेढ़क निकलते हैं बरसात में।।

जश्न में भूल जाना हमें चाहे तुम।
याद करना मगर हमको आफ़ात में।।
     
                             -डॉ पवन मिश्र

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