Tuesday, 26 April 2016

मुक्तक


कर लो कोशिश मगर याद मैं आऊंगा,
प्रीत की शबनमी बूँदें धर जाऊंगा।
चाहे कर लेना तुम लाख इन्कार पर,
आँख से बह के लब तक पहुँच जाऊँगा।।

इस जहाँ से भी आगे नगर एक है,
मिलना ही है हमें जब डगर एक है।
इश्क की राह में उस जगह आ गए,
ज़िस्म हैं दो सही जाँ मगर एक है।।

प्रीत के रीत की वाहिका तुम बनो,
पुन्य ये यज्ञ है साधिका तुम बनो।
डोर विश्वास की न ये टूटे कभी,
कृष्ण बन जाऊँगा राधिका तुम बनो।।


             ✍डॉ पवन मिश्र

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