Saturday, 18 February 2017

ग़ज़ल- हमसे कितना प्यार करोगे


आँखों से ही वार करोगे।
या खुलकर इज़हार करोगे।।

अपने हुस्न के जलवों से तुम।
कितनों को बीमार करोगे।।

कोई तो हद, यार बता दो।
हमसे कितना प्यार करोगे।।

तरस रही है बगिया तुम बिन।
कब इसको गुलज़ार करोगे।।

स्वप्न अधूरे जो मेरे हैं।
तुम ही तो साकार करोगे।।

सारे शिक़वे यार भुला दो।
आख़िर कब तक रार करोगे।।

झूठे वादों के दम पर तुम।
कब तक ये व्यापार करोगे।।

            ✍ डॉ पवन मिश्र

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