Monday, 27 February 2017

ताटंक छन्द- आजाद

तम की काली रात लीलने, जो बिजली सा कौंधा था।
दम्भी अंग्रेजों को जिसने, मरते दम तक रौंदा था।।
लेकिन वो भी समझ न पाया, घात लगाए था भेदी।
क्रांति यज्ञ में आखिर उसने, आहुति प्राणों की दे दी।१।

भारत माँ का लाल अनोखा, अपनी धुन का मस्ताना।
वह आजाद सिंह शावक वह, आजादी का दीवाना।।
नमन उसे है आज हृदय से, नत है सम्मुख ये माथा।
भारत की धरती सदियों तक, गायेगी उसकी गाथा।२।
                             
                                              ✍डॉ पवन मिश्र
  

No comments:

Post a Comment