नहीं पर्वा कभी की यार हमने इस जमाने की।
मुहब्बत हो गयी तुमसे सजा ये है दिवाने की।।
मुबारक हो तुम्हे मजबूरियां जो भी तुम्हारी हैं।
चले जाओ जरूरत क्या तुम्हे बातें बनाने की।।
बिखरना ख़्वाब का हमने चलो तकदीर कह डाला।
करेंगे आज से कोशिश तुम्हे दिल से भुलाने की।।
तुम्हे हक है कुरेदो लाख चाहें जख़्म तुम मेरे।
*मुझे आदत नहीं है दूसरों का दिल दुखाने की*।।
अभी तो रो रहा हूँ मैं, जनाजे में तो आओगे ?
वहीं बारी तुम्हारी आएगी आँसू बहाने की।।
पवन का इश्क़ तुमको बेवफ़ा कह पायेगा कैसे ?
मिलें खुशियां सभी तुमको दुआ है ये दिवाने की।।
✍ डॉ पवन मिश्र
**मनीष सिंह 'आवारा' जी का मिसरा
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