उनकी झूठी है अदावत मुझे मालूम न था।
यूँ भी होती है सियासत मुझे मालूम न था।।
मेरे हुजरे में चले आये हिजाबों के बिना।
*यूँ भी आती है कयामत मुझे मालूम न था*।।
बेजुबाँ दिल भी लगा चीखने उनकी ख़ातिर।
इसको कहते हैं मुहब्बत मुझे मालूम न था।।
अब तलक दिल की ही सुनता मैं रहा लेकिन।
वो भी कर देगा बगावत मुझे मालूम न था।।
छोड़ जाएंगे अकेला युँ जमाने में मुझे।
होगी इस दर्जा शिकायत मुझे मालूम न था।।
✍ डॉ पवन मिश्र
हुजरा= व्यक्तिगत कक्ष
हिजाब= नकाब, पर्दा
**फ़िराक गोरखपुरी साहब का मिसरा
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