Saturday, 17 October 2015

ग़ज़ल- बेतुकी बात है तो असर क्या करे


बेतुकी बात है तो असर क्या करे।
देखना ही न हो तो नज़र क्या करे।।

लाख मिन्नत पे भी गर परिन्दे उड़े।
छोड़ के घोसलें तो शज़र क्या करे।।

चन्द कदमों में ही देख के मुश्किलें।
लड़खड़ा वो गए तो डगर क्या करे।।

जाना था साथ उनके बहुत दूर तक।
हाथ वो छोड़ दें तो सफ़र क्या करे।।

जिनसे अम्नो वफ़ा की रिवायत बनी।
लेके पत्थर खड़े तो शहर क्या करे।।

रंजिशें दिल में हाथों में खंज़र लिए।
रात बैरन बनी तो सहर क्या करे।।

                   -डॉ पवन मिश्र

शज़र=पेड़, रिवायत= रीति-रिवाज, सहर= सुबह

No comments:

Post a Comment