लाश पर करने सियासत कुछ सयाने आ गए।
आदमीयत वो हमे देखो सिखाने आ गए।।
झोपड़े की आग में मासूम जल कर राख थे।
ओढ़ कर खादी सभी फोटो खिचाने आ गए।।
नज़्म की ख़ातिर बिठाया आपको सर आँख पर।
मान लौटा के न जाने क्या जताने आ गए।।
मन्दिरों औ मस्जिदों में ढूंढते हैं जो खुदा।
मजहबों के नाम पर वो घर जलाने आ गए।।
हाथ जोड़े बाँध भोंपू बेचकर ईमान को।
पांच सालों का वही जलसा मनाने आ गए।।
-डॉ पवन मिश्र
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