मेरे अन्तर्मन से
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ग़ज़ल
Monday, 2 November 2015
पञ्चचामर छन्द- अजीब सी हवा चली
अजीब सी हवा चली,
समाज छिन्न भिन्न है।
पुकार सृष्टि की सुनो,
दिखे कि तू अभिन्न है।
न चाँद है न चांदनी,
चकोर तो विभिन्न हैं।
प्रभो करो कृपा सदा,
सभी मनुष्य खिन्न हैं।
-डॉ पवन मिश्र
चार चार पर यति समेत लघु गुरु की आठ आवृत्ति
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