शांति पाठ की बात अनर्गल, समय यही प्रतिकारों का।
शीश कलम कर के ले आओ, धरती के गद्दारों का।।
भूल गए इतिहास पड़ोसी, भान नहीं है हारों का।
कूटनीति को त्याग समय है, हर हर के जयकारों का।।
रक्त भरे माँ के आँचल को, पुत्र न अब सह पायेगा।
सीने में धधक रही ज्वाला, शान्त नही रह पायेगा।।
बहुत हो गया छद्म वार अब, शत्रु न कुछ कह पायेगा।
अपने दूषित कर्मों का फल, निश्चित ही वह पायेगा।।
हो जाने दो घमासान अब, रणभेरी बज जाने दो।
अस्त्र शस्त्र तैयार धरे हैं, वीरों को सज जाने दो।।
फ़ौज खड़ी है बकरों की तो, गरज़ सिंह को जाने दो।
स्वांग रचाता पौरुष का जो, उसको तो लज जाने दो।।
अपनी हर कुत्सित करनी पे, उसको अब पछताना है।
बहुत दे चुके क्षमादान अब, रौद्र रूप दिखलाना है।।
त्याग कृष्ण की वंशी को अब, चक्र सुदर्शन लाना है।
मानचित्र में पाक न होगा, अबकी हमने ठाना है।।
-डॉ पवन मिश्र
शिल्प- 16 और 14 मात्राओं पर यति के साथ अंत में तीन गुरुओं की अनिवार्यता
Very nise for this time
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDelete