Saturday, 28 November 2015

ग़ज़ल- इश्तहारों की चमक में खो गयी है


इश्तहारों की चमक में खो गयी है।
ज़िन्दगी अख़बार सी अब हो गयी है।।

रंग खादी का चढ़ेगा खूब अब तो।
आदमीयत छोड़ जो उनको गयी है।।

ये तमाशा और भी होगा जवाँ अब
श्वान के पाले में हड्डी जो गयी है।।

मैं ही क्या, अब आसमां भी है परेशां।
चाँद भी गुमसुम है जबसे वो गयी है।।

अब तो लगता है मिलेंगी राहतें कुछ।
चाँदनी कल ज़ख्म मेरे धो गयी है।।

दिल की बस्ती में बड़ी रानाइयां हैं।
रोशनी की फ़स्ल गोया बो गयी है।।

                      -डॉ पवन मिश्र
रानाइयां= चमक,    गोया= मानो

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