हर बात खरी कहिये सबसे,
मन की गठरी हलकी रखिये।
सुख हो दुख हो क्षण भंगुर हैं,
हर प्रात यही जपते रहिये।।
सब आतुर हैं धन वैभव को,
यह भंगुर है खुद से कहिये।।
भव सागर से तरना गर हो,
हरि नाम जपा करते रहिये।।
- डॉ पवन मिश्र
दुर्मिल सवैया छंद- आठ सगण अर्थात् 112×8 मात्रा युक्त सममात्रिक छन्द
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