Wednesday, 21 October 2015

हे प्रिये सुनो अब आन मिलो

                 ~मत्त सवैया छन्द~

हे प्रिये सुनो अब आन मिलो, रैना न बितायी जाती है।
मन आकुल है तन व्याकुल है, नयनो को नींद न भाती है।।

आकाश बना कर यादों का, मन का खग विचरण करता है।
इस ओर कभी उस ओर कभी, यह मारा मारा फिरता है।।

तुम आओगे कब आओगे, अपलक नयनों से ताक रहे।
शोर बढ़ा है धड़कन का पर, हर आहट पे हम झांक रहे।।

निष्ठुर जग के आघातों पर, थोड़ा सा मरहम धर जाओ।
मन की वीणा के तारों को, थोड़ा सा झंकृत कर जाओ।।

                                        -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,16 मात्राओं पर यति तथा पदांत में गुरु की अनिवार्यता।

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