भजूं मैं कन्हैया वही नाथ मेरा।
वही शाम मेरी वही है सवेरा।।
धरा है उसी की सितारे उसी के।
नदी धार में वो किनारे उसी के।१।
वही राधिका का वही गोपियों का।
वही प्रेमियों का वही योगियों का।।
सुनो द्वारिकाधीश तेरा सुदामा।
पुकारे तुम्हें, हे सुनो नाथ श्यामा।२।
✍डॉ पवन मिश्र
शिल्प- चार यगण (१२२*४)
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