चलो ऐसा करें रिश्ता सँवारें।
धुली सी चाँदनी में शब गुज़ारें।।
सफ़र की तयशुदा मंजिल वही है ।
मगर फिर भी चलो रस्ते बुहारें।।
मुक़द्दर में हमारे तिश्नगी है।
मिलेंगी कब हमें रिमझिम फुहारें।।
बनी परछाइयाँ भी अजनबी अब।
अँधेरी राह है किसको पुकारें।।
खड़ी कर ली थी तुमने दरमियां जो।
दरकती क्यों नहीं हैं वो दिवारें।।
पवन की कोशिशें जारी रहेंगी।
कि जब तक आ नहीं जाती बहारें।।
✍ डॉ पवन मिश्र
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