अद्भुत छवि मनमोहन जी की,
करहुँ आरती सोहन जी की।
लाल अधर पर मुरली साजे,
कानन कुण्डल सहित विराजे।१।
पुष्प माल वक्षस्थल शोभे,
मोर मुकुट मस्तक पर लोभे।
मृगनैनन में काजल रेखा,
अप्रतिम ऐसा रूप न देखा।२।
पीत तिलक अति सुंदर लागे,
हर्षित गोप वृन्द बड़ भागे।
चक्र सुदर्शन कर में धारे,
मातु यशोदा रूप निहारे।३।
कनक समान देह अति मोहे,
मन्द हँसी मुखड़े पर सोहे।
हाथ जोड़ सब खड़े दुआरे
क्लेश हरो हे नन्द दुलारे।४।
✍डॉ पवन मिश्र
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