बात करनी नही तो बुलाते हो क्यों।
वक्त बेवक्त मुझको सताते हो क्यों।।
दिल की आवाज को अनसुना करके तुम।
अजनबी की तरह पेश आते हो क्यों।।
मेरा किरदार है कुछ नहीं तेरे बिन।
जानते हो तो फिर दूर जाते हो क्यों।।
कोई परदा नहीं दरमियां जब सनम।
अश्क़ आँखों के हमसे छुपाते हो क्यों।।
रंग औ नूर ही जब चमन ने दिया।
नोच कर गुल ख़ियाबां मिटाते हो क्यों।।
बस्तियाँ पूछती रहनुमाओं से अब।
वोट पाने को घर तुम जलाते हो क्यों।।
लो पवन आ गया रूबरू अब कहो।
बात कुछ भी नहीं तो बढ़ाते हो क्यों।।
✍ डॉ पवन मिश्र
खियाबाँ= बाग़
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