यही कामना है प्रिये आज मेरी,
जुदा हो सभी से हमारी कहानी।
नहीं साथ ये जिस्म है तो हुआ क्या,
सदा संग होगी तुम्हारी निशानी।
अँधेरा घनेरा कभी जो डराये,
करो याद वो रात जो थी सुहानी।
भले दूर जाओ यहाँ से कहीं भी,
कभी भूल जाना न बातें पुरानी।१।
तुम्हारी अदाएं हमे याद सारी,
निगाहें चुरा के बहाने बनाना।
कभी तल्ख़ बातें कभी प्रेम पींगें,
कभी रूठ जाना कभी मान जाना।
अविश्वास की बात होगी कभी ना,
भले लाख बाते बनाये जमाना।
भुलाया मुझे है तुम्हारे जिया ने,
खुदा भी कहे तो न माने दिवाना।२।
✍डॉ पवन मिश्र
शिल्प- आठ यगण (१२२*८)
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