वो गए तो हमे याद आती रही।
रात काली उन्हें भी डराती रही।।
ख्वाब बेचैन थे नींद थी ही नहीं।
आप आये नहीं याद आती रही।।
रात में चाँद के साथ हम हो लिए।
चांदनी तेरे किस्से सुनाती रही।।
रात में बेकली किस कदर थी उन्हें।
सिलवटें चादरों की बताती रही।।
होठ को शबनमी बूँद से क्या मिला।
खुद जली और हमको जलाती रही।।
पलकों की कोर पे सूखे मोती लिए।
सुर्ख़ मेहंदी हमें वो दिखाती रही।।
-डॉ पवन मिश्र
रात काली उन्हें भी डराती रही।।
ख्वाब बेचैन थे नींद थी ही नहीं।
आप आये नहीं याद आती रही।।
रात में चाँद के साथ हम हो लिए।
चांदनी तेरे किस्से सुनाती रही।।
रात में बेकली किस कदर थी उन्हें।
सिलवटें चादरों की बताती रही।।
होठ को शबनमी बूँद से क्या मिला।
खुद जली और हमको जलाती रही।।
पलकों की कोर पे सूखे मोती लिए।
सुर्ख़ मेहंदी हमें वो दिखाती रही।।
-डॉ पवन मिश्र
बेहद उम्दा पंडित जी बलिया वाले
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ReplyDeleteGreat Poem Sir
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteबात ही बात से बात निकली बहुत
ReplyDeleteआपकी लेखनी दिल लुभाती रही
सुन्दर रचना पवन जी । बधाई ।
धन्यवाद रवि जी...प्रणाम
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Deleteशानदार
ReplyDeleteAur bhi chijo.per blog kholna chahyie
ReplyDeleteAur bhi chijo.per blog kholna chahyie
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