Monday, 21 September 2015

ग़ज़ल- तुम अगर साथ दो


तुम अगर साथ दो सब सँभल जायेगा।
एक पल में ही मंजर बदल जायेगा।।

छुप के देखो न तुम, रेशमी ओट से।
मिल गई जो नज़र, दिल मचल जायेगा।।

रुक सको तो रुको, महफिले शाम में
है परेशां बहुत, मन बहल जायेगा।।

दिल परेशान है, धड़कनें बावली।
तेरे ज़ानों पे हर गम पिघल जायेगा।।

नर्म सांसो को आहों से, रखना जुदा।
ये भड़क जो गयीं, तन उबल जायेगा।।

बेरुखी से तुम्हारी दीवाना तेरा।
हाथ से रेत जैसा फिसल जायेगा।।

हूँ परेशां मगर साथ उम्मीद भी।
ये भी इक दौर है जो निकल जायेगा।।

शब्द बिखरे पड़े है पवन के यहाँ।
गुनगुना दो तो कह के ग़ज़ल जाएगा।।
                         
                           - डॉ पवन मिश्र
ज़ानों= गोद

3 comments: