हे प्राण प्यारी प्रियतमा तुम, शान्त क्यों कुछ तो कहो।
मन के सभी संताप छोड़ो, स्वप्न-नव उर में गहो।
जब हूं सदा मैं साथ तेरे, संकटों से क्यूं डरो।
जो नीर पलकों पर धरे हैं, व्यर्थ मत इनको करो।
माना तिमिर गहरा घना है, धीर थोड़ा तुम धरो।
आगे खुला आकाश सारा, आस धूमिल मत करो।
आरम्भ ही तो है अभी यह, डगमगाना क्यों अहो।
विश्वास ही सम्बल परम है, धार में आगे बहो।
- डॉ पवन मिश्र
*हरिगीतिका चार चरणों का सममात्रिक छंद होता है।16 व 12 के विराम के साथ प्रत्येक चरण में 28 मात्राओं तथा अंत में लघु व गुरु की अनिवार्यता होती है।
अद्वितीय … मात्राओं का सम्मान किया है…
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete