Thursday, 17 December 2015

ग़ज़ल- दफ़्न जज्बातों को


दफ़्न जज्बातों को बस थोड़ी हवाएं चाहिए।
सँगदिलों की भीड़ से थोड़ी वफाएं चाहिए।।

साजिशों का दौर जारी मुल्क में मेरे अभी।
साजिशें वो ख़ाक हों ऐसी दुआएं चाहिए।।

बुत बना है आदमी उसकी जमी है नब्ज़ भी।
रक्त जिनमें खौलता हो वो शिराएं चाहिए।।

दूसरों के घर जला जो सेकता है रोटियाँ।
उस सियासतदार की ख़ातिर चिताएं चाहिए।।

हस्तिनापुर सा नहीं संसद हमें मंजूर है।
द्रौपदी का मान हो ऐसी सभाएं चाहिए।।

तेज लहरें तोड़ दे तो वो भला पत्थर कहाँ।
रोक ले जो धार को ऐसी शिलाएं चाहिए।।

                                -डॉ पवन मिश्र








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