गांव में जिनके मकां कच्चे लगे।
बात के हमको बहुत अच्छे लगे।।
रेत के अपने घरौंदों को लिए।
तिफ़्ल वो हमको बड़े सच्चे लगे।।
ज़िद पकड़ के रूठने की ये अदा।
आप तो दिल के हमें बच्चे लगे।।
देखने की जब तुझे चाहत हुई।
दीद में बस फूल के गुच्छे लगे।।
छत न जिनकी रोक पाती बारिशें।
वो उसूलों के बहुत पक्के लगे।।
-डॉ पवन मिश्र
तिफ़्ल= बच्चे, दीद= देखना
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