छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम करवट लेता।
कभी सर्द तो कभी गर्म है, जैसे कोई नेता।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम है अनजाना।
इस सर्द गरम में सम्भव है, खाँसी का लग जाना।
छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम सब पर भारी।
कभी ठण्ड तो कभी गरम से, व्याकुल हैं नर नारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा मौसम फेरा।
दिन में रवि का ताप चढ़े है, फिर हो शीतल डेरा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, ये कैसी है सर्दी ।
पूष मास में भी ना निकली, मोटी वाली वर्दी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, क्यूँ ना सर्दी आती।
हिम गिरने की बेला में क्यूँ, रंगत धूप दिखाती।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, तय कर लो अब प्रभु जी।
दूर करो ये लुका छिपी अब, मानो मेरी अरजी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, मानो प्रभु हैं कहते।
पेड़ काट डाले है तुमने, जिनसे मौसम रहते।।
- डॉ पवन मिश्र
शिल्प- 16,12 मात्राओं पर यति तथा चरणान्तक २२ या २११ या ११२ या ११११ से होना चाहिए।
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