मेरी डायरी
मेरे एकांत की सहचरी
करती है मौन समर्पण
स्वयं का
जब मैं होता हूँ
अकेला
आत्मसात करती है
मेरी भावनायें
मेरे शब्द
बिना उफ़ तक किये
सहती है
मेरे विचारों की उग्रता
शब्दों की ऊष्मा
समझती है
उस प्रेम को
जो है प्रतीक्षारत
आज भी
पहचानती है
मेरी पिपासा
मेरी जिज्ञासा
देती है स्थान
मेरी करुणा को
वेदना को
क्रोधित नहीं होती
जब खीझकर
निष्ठुरता से
फाड़ देता हूँ
पन्ने उसके
तब भी नहीं
जब सालों तक
जीवन की आपाधापी
के फलस्वरुप
रख छोड़ा था उसे
रद्दी की टोकरी में
असहाय सी
घर के एक
अँधेरे कोने में
लेकिन
आज भी
मेरे हृदय स्पंद से
सहसा पलट जाते हैं
उसके पन्ने
आज भी उन
पीले पन्नों में
सुरक्षित हैं
मेरे शब्द
मेरी कविता
तुम्हारी यादें
और कुछ
सूखे हुए फूल
-डॉ पवन मिश्र
मेरे एकांत की सहचरी
करती है मौन समर्पण
स्वयं का
जब मैं होता हूँ
अकेला
आत्मसात करती है
मेरी भावनायें
मेरे शब्द
बिना उफ़ तक किये
सहती है
मेरे विचारों की उग्रता
शब्दों की ऊष्मा
समझती है
उस प्रेम को
जो है प्रतीक्षारत
आज भी
पहचानती है
मेरी पिपासा
मेरी जिज्ञासा
देती है स्थान
मेरी करुणा को
वेदना को
क्रोधित नहीं होती
जब खीझकर
निष्ठुरता से
फाड़ देता हूँ
पन्ने उसके
तब भी नहीं
जब सालों तक
जीवन की आपाधापी
के फलस्वरुप
रख छोड़ा था उसे
रद्दी की टोकरी में
असहाय सी
घर के एक
अँधेरे कोने में
लेकिन
आज भी
मेरे हृदय स्पंद से
सहसा पलट जाते हैं
उसके पन्ने
आज भी उन
पीले पन्नों में
सुरक्षित हैं
मेरे शब्द
मेरी कविता
तुम्हारी यादें
और कुछ
सूखे हुए फूल
-डॉ पवन मिश्र
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