प्रात भई खग चहकन लागे,
घर आँगन भी महकन लागे।।
निशा गयी फैला उजियारा,
कुसुमालय सा है जग सारा।।
शीतल मन्द पवन भी आयी,
हर बगिया हरियाली छायी।
ईश विनय में शीश झुकाऊँ,
कृपा दृष्टि आजीवन पाऊँ।।
गुरु चरणों में वन्दन अर्पित,
क्या मैं दूँ सर्वस्व समर्पित।
मात-पिता का प्रभु सम आदर,
जीवन अर्पण उनको सादर।।
यह मिट्टी तो जैसे चन्दन,
देश-प्रेम से महके तन मन।
इसकी ख़ातिर बलि बलि जाऊँ,
जन्म पुनः भारत में पाऊँ।।
-डॉ पवन मिश्र
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