चैन मिलता हमें एक पल का नहीं।
अश्क़ रुकते नहीं जख़्म भरता नहीं।।
जो दुखायेंगे दिल अपने माँ बाप का।
माफ़ उनको खुदा भी करेगा नहीं।।
छोड़ दे आप मेरा वतन शौक से।
मुल्क पर आपको जब भरोसा नहीं।।
जिंदगी साथ में थी बहुत पुर सुकूँ।
बाद तेरे मिला एक लम्हा नहीं।।
मेरे किरदार की तो वजह तुम ही थे।
बिन तुम्हारे जियेंगे ये सोचा नहीं।।
शब जली साथ में दिन भी तपता रहा।
उसके बिन एक भी पल गुजरता नहीं।।
है शिकायत हमें आज भी आपसे।
खुद ही रुकते अगर हमने रोका नहीं।।
-डॉ पवन मिश्र
पुर सुकूँ= सुकून भरी, शांतिमय
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