देश का मुकुट हमारा, प्राणों से जो हमको प्यारा।
ऐसे कश्मीर के लिए वो बेकरार है।।
समझाओ उसे जा बात से या लात से कि।
उसकी सारी कोशिशें तो अब बेकार है।१।
ढीढ बन पीठ पर करे है बार बार वार।
शूकरों की फ़ौज का वो बना सरदार है।।
खुद के हालात किये बिना लाठी लंगड़े सी
अपनी दशा का तो वो खुद जिम्मेदार है।२।
भारतीय शावकों का सामना करेगा कैसे।
रक्त नहीं नब्ज़ में तो खौलता अंगार है।।
इनकी समानता करेंगे कैसे वो नापाक।
जिनकी शिराओं में तो पानी की बहार है।३।
इकहत्तर में तो उखाड़ ही दिया था एक बाजू।
अबकी बाजी तेरे शीश की लगाएंगे।।
भारती का हर सपूत देख रहा स्वप्न यही।
कब इस्लामाबाद में तिरंगा फहराएंगे।४।
मन के ज्वार कब तक रहेंगे मन ही में।
कभी तो ये घटा जैसे घोर गहराएंगे।।
भड़केगी अग्नि जब हर गली कूचे से तो।
देखे दिल्ली वाले इसे कैसे रोक पाएंगे।५।
-डॉ पवन मिश्र
No comments:
Post a Comment