हे प्रिये मान लो बात ये जान लो।
प्रीत की रीत को यूँ निभाते रहो।।
कालिमा रात की भी रहेगी नहीं।
राह में दीप कोई जलाते रहो।।
साथ कोई रहे या न हो साथ में।
साथ मेरे पगों को बढ़ाते रहो।।
स्वप्न पालो इसी मोतियों के तले
नीर को आँख से क्यों बहाते रहो।।
-डॉ पवन मिश्र
शिल्प- चार चार पर यति के साथ आठ रगण अर्थात् २१२×8
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