दूर गए मनमोहन तो, अब नैनन चैन कहाँ रहिये।
पीर बसी हिय गोपिन के, अब कौन उपाय प्रभो कहिये।।
नाथ अनाथ बनाय चले, कर जोरि कहे हमरी सुनिये।
भक्त करें बिनती तुमसे, अब तो बृज धाम चले चलिये।।
आकुल व्याकुल लोग सभी, खग कूजत ना अब कानन में।
रोअत आँखिन, धूमिल से तन, कान्ति नहीं अब आनन में।।
खार हुआ जमुना जल भी, बहु पीर भरी दुखिया जन में।
हे चितचोर हृदेश सुनो, अब धीर भरो सबके मन में।।
- डॉ पवन मिश्र
शिल्प- 7 भगण (२११×७)+१ गुरू, सामान्यतः 10,12 वर्णों पर यति।
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