Sunday, 17 November 2019

ग़ज़ल- उनकी जानिब से भी कोई तो इशारा देखूँ

२१२२      ११२२     ११२२     २२

उनकी जानिब से भी कोई तो इशारा देखूँ।।
इस मुहब्बत के लिये उनका इरादा देखूँ।।

अपने ख्वाबों का ही हर बार जनाजा देखूँ।
ऐ खुदा इससे बुरा तू ही बता क्या देखूँ।।

तू गया छोड़ के जिस मोड़ पे तन्हा करके।
मैं उसी मोड़ पे अब भी तेरा रस्ता देखूँ।।

ये मुहब्बत है ? इबादत है ? कि मदहोशी है ?
वो नहीं फिर भी उसी यार का चहरा देखूँ।।

बन्द आंखों ने मेरी जबसे तुझे देखा है।
तब से हरसूं तेरे जलवों का नज़ारा देखूँ।।

ऐसे मंजर से मुझे दूर ही रखना मौला।
बाप के कांधे पे बेटे का जनाजा देखूँ।।

नाख़ुदा बन के हूँ तैयार सफीना लेकर।
चल समंदर तेरी मौजों का इरादा देखूँ।।

                              ✍️ डॉ पवन मिश्र
नाख़ुदा= नाविक
सफ़ीना= नाव
मौज= लहर

Saturday, 9 November 2019

रामजन्मभूमि निर्णय

9/11/19 को आये रामजन्मभूमि मामले पर निर्णय के सम्बंध में

द्वारे बंदनवार सजाओ,
कोटि- कोटि पुनि दीप जलाओ।
अवधपुरी के भाग्य जगे हैं,
वर्षों के तप आज फले हैं।
प्रस्तर प्रस्तर बोला है जब,
न्यायमूर्ति ने न्यायोचित तब।
लिक्खा यह पृष्ठ कहानी का,
रामलला की अगवानी का।।
रामलला की अगवानी का।।

           ✍️ डॉ पवन मिश्र

Saturday, 7 September 2019

ग़ज़ल- शेर उनकी याद में हम वस्ल के लिखते रहे



शेर उनकी याद में हम वस्ल के लिखते रहे।
वो मगर बस फासलों पर फासले लिखते रहे।।

वो गए और हिचकियाँ भी आजकल आती नहीं।
एक हम हैं गीत बस उनके लिए लिखते रहे।।

नींद सबकी ले उड़ा वो आख़री हिचकी के सँग।
चैन से वो सो गया हम मरसिए लिखते रहे।।

भीड़ में चर्चा रही, तूफ़ान की, सैलाब की।
हम तो केवल कश्तियों के हौसले लिखते रहे।।

मंज़िले उन कोशिशों को ही अता होती यहां।
हौसलों से जो सफ़र के कायदे लिखते रहे।।

जिंदगी के फ़लसफ़े चल सीख लें उनसे पवन।
अश्क़ आंखों में छिपा जो कहकहे लिखते रहे।।

                              ✍ डॉ पवन मिश्र
वस्ल= मिलन
मरसिए= शोकगीत

Sunday, 14 July 2019

ग़ज़ल- इक पतंगे ने खुदकुशी कर ली


इक पतंगे ने खुदकुशी कर ली।
शम्अ से उसने आशिकी कर ली।।

उनकी तस्वीर को रहल पे रख।
हमने उनकी ही बन्दगी कर ली।।

उसको खुद में समा लिया मैंने।
रूह तक मैंने रौशनी कर ली।।

बस यही एक ज़ुर्म कर बैठा।
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली**।।

हमको मय की न ख्वाहिशें साक़ी।
तेरी आँखों से मयकशी कर ली।।

रौशनी किसके दर पे जाए अब।
जब चरागों ने तीरगी कर ली।।

जीस्त ने फ़लसफ़े सिखाये जो।
हमने उनसे ही शाइरी कर ली।।

            ✍ डॉ पवन मिश्र

रहल- लकड़ी का एक स्टैंड जिसपर धर्मग्रंथ रखे जाते हैं।

**मिसरा बशीर बद्र साहब का है

Saturday, 13 July 2019

मुक्तक- राधा का प्रेम


कृष्ण का साथ रनिवास कुछ ना लिया,
द्वारिका के महल का न तिनका लिया।
मांग में लालिमा भी न ली कृष्ण से,
राधिका ने मगर कृष्ण को पा लिया।१।

त्याग की मूर्ति थी त्याग उसने किया,
प्रेम का सब हलाहल स्वयं पी लिया।
प्रेम पथ के पथिक तो बहुत हैं मगर,
प्रीति की रीति को राधिका ने जिया।२।

पावनी गंग है एक आम्नाय है,
राधिका प्रेम का एक पर्याय है।
ग्रन्थ माना वृहद है मगर राधिका,
कृष्ण लीला का स्वर्णिम अध्याय है।३।
(आम्नाय= पवित्र प्रथा/रीति)

विश्व को जीवनी सभ्यता दे गए,
प्रेम की इक अनूठी कथा दे गए।
विरह में अश्रु भी मुस्कुराने लगे,
राधिका-कृष्ण ऐसी प्रथा दे गए।४।

                           ✍️ डॉ पवन मिश्र

Monday, 10 June 2019

लावणी छंद- गुड़िया (अलीगढ़ की घटना पर आधारित)

(अलीगढ़ के टप्पल से 30 मई 2019 को तीन वर्ष की बच्ची के अपहरण बाद हत्या और शरीर के क्षत विक्षत किये जाने की हृदयविदारक घटना के संदर्भ में)

तीन वर्ष की प्यारी गुड़िया, ठुमक ठुमक कर चलती थी।
मम्मी पापा की आंखों में, प्रखर ज्योति सी जलती थी।।
घर आंगन महकाती थी वो, नाजों से वो पलती थी।
लेकिन तीन वर्ष की गुड़िया, शैतानों को खलती थी।१।

नन्ही बुलबुल फुदक रही थी, आंगन में गलियारे में।
क्रूर बाज ने घात लगाकर, खींच लिया अँधियारे में।।
लील गई कड़वी निर्धनता, मीठी शक्कर की पुड़िया।
दस हजार की ख़ातिर देखो, स्वाहा लाखों की गुड़िया।२।

फूलों सी वो नाजुक बिटिया, कूड़ेघर में पड़ी रही।
वहशी हिंसक शैतानों के, साथ अंत तक अड़ी रही।।
और दरिंदे ने फिर उसको, गला घोंट कर मार दिया।
जाहिल ज़ाहिद मुझे बता तू, क्यूं ये अत्याचार किया ३?

रेत रहे थे तुम गर्दन जब, तुमने हाथ उखाड़ा था।
सच बतलाओ क्या अंतस ने, तुझको नही पुकारा था ?
कितना पत्थर दिल है तेरा, जो अश्कों से नहीं बहा ?
बोलो अंत समय क्या उसने, तुमको चाचा नहीं कहा ४?

दोष नहीं है मात्र तुम्हारा, जो तुमने यह कर्म किया।
दूषित है तालीम तुम्हारी, जिसने ऐसा मर्म दिया।।
दोषी है वो कोख कि जिसने, नरपिशाच का भरण किया।
दोष वीर्य की उन बूंदों का, जिसने तुमको जन्म दिया।५।

बचपन से ही जीवों के प्रति, निर्ममता का पाठ पढ़ा।
बकरे की फिर गर्दन रेती, सँग हिंसा के पला बढ़ा।।
भोजन में भी रक्त समाहित, गर्दन पैरों के टुकड़े।
तो कैसे महसूस करेगा, आंखों से बहते दुखड़े।६।

दूषित करने गांव-शहर को, छोड़ कबीले तुम आए।
मगर कबीलाई संस्कृति से, खुद को मुक्त न कर पाए।।
दोष तुम्हारे संस्कारों का, जिसको पा तुम पले बढ़े।
लानत उस समाज पर जिसने, तेरे जैसे दंश गढ़े।७।

इंसां कैसे कह दूं ये तो, गिद्धों से भी बदतर हैं।
इनके अपराधों के बदले, महज सलाखें कमतर हैं।।
इन हत्यारों के सँग कोई, नहीं रियायत की जाए।
चौराहे पे सरेआम ही, इनको फांसी दी जाए।८।
     
                                         ✍️ डॉ पवन मिश्र








Wednesday, 8 May 2019

ग़ज़ल- दर्द से थक हार कर जो लोग मयख़ाने गए


दर्द से थक हार कर जो लोग मयख़ाने गये।
लौट कर आये नही जितने भी दीवाने गये।।

रात भर पीता रहा मैं उनकी आंखों से शराब।
और मुझको ढूंढने को लोग मयख़ाने गये।।

इश्क दरिया आग का है जानते थे वो मगर।
शम्अ फिर भी चूमने बेख़ौफ़ परवाने गए।।

अब हमारे अलबमों में फोटुएं उनकी नहीं।
रफ़्ता रफ़्ता ज़ेह्न से भी सारे अफ़साने गए।।

कोशिशे जिनकी न मानीं हारकर चुप बैठना।
इस जहां में मंजिलों तक वो ही दीवाने गए।।

                                    ✍️ डॉ पवन मिश्र

Thursday, 25 April 2019

ग़ज़ल- देखो ना


साहब की आई है सत्ता देखो ना।
रंग-ढंग और कपड़ा लत्ता देखो ना।।

दादी पापा भी पहले भरमाते थे।
अब पपुआ बांटेगा भत्ता देखो ना।।

गुरबत और सियासी चालों में फँसकर।
मरने को मजबूर है नत्था देखो ना।।

तुम बिन बगिया सूनी सूनी लगती है।
मुरझाया है पत्ता पत्ता देखो ना।।

मरघट पे बहती नदिया दिखलाती है।
मानव तन कागज़ का गत्ता देखो ना।।

छेड़ नहीं तू शांत पवन को ऐ नादां।
बर्रैया का है ये छत्ता देखो ना।।

                   ✍️ डॉ पवन मिश्र

Monday, 22 April 2019

नवगीत- आओ सब मतदान करें


लोकतंत्र का पर्व निराला,
संविधान का ये रखवाला।
दस्तक देकर हमें बुलाये,
देखो वेला बीत न जाये।
पुण्य यज्ञ यह आहुति मांगे,
इसका हम सम्मान करें।
आओ सब मतदान करें।१।

चाचा चाची निकलो घर से,
धूप मिले या पानी बरसे।
आंधी-तूफ़ां कुछ भी आए,
लेकिन लक्ष्य न डिगने पाए।
मतकेन्द्रों तक जाना ही है,
दूर सभी व्यवधान करें।
आओ सब मतदान करें।२।

आज अगर आलस के मारे,
मत देने से चूके प्यारे।
तो अयोग्य चुनकर आएगा,
दोष तुम्हारे सर जाएगा।
आने वाली पीढ़ी के हित,
चलो राष्ट्र निर्माण करें।
आओ सब मतदान करें।३।

अपना मत अपनी मर्जी से,
ना दबाव, ना ही अर्जी से।
जाति-धर्म से ऊपर उठकर,
राष्ट्रवाद सर्वोपरि रखकर।
लोकतंत्र की रक्षा के हित,
चलो सभी प्रस्थान करें।
आओ सब मतदान करें।४।

       ✍️ डॉ पवन मिश्र


Friday, 5 April 2019

श्री मुरलीधाम मन्दिर, कोटरा, उन्नाव


चलिये आज आप सभी को ले चलते हैं, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के कोटरा ग्राम स्थित मुरलीधर मन्दिर। माखी थानाक्षेत्र का यह गांव ब्लॉक मुख्यालय मियागंज से लगभग 11 किमी दूर स्थित है।
हुआ यूं कि ३१ मार्च २०१९ दिन रविवार को एक पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अंतर्गत पं दीनदयाल विद्यालय, कानपुर के पूर्व छात्रों की संस्था युगभारती के अपने कुछ अग्रजों और अनुजों संग आचार्य श्री ओमशंकर त्रिपाठी जी के ग्राम सरौहां, उन्नाव जाना हुआ। आचार्य जी के यहां क्षेत्र के सभ्रांत व्यक्तियों से मिलना हुआ। समाज और राष्ट्र के सम्बंध में चर्चा परिचर्चा के दौरान ही जिक्र हुआ पास के गांव कोटरा स्थित एक अति प्राचीन मंदिर मुरलीधर धाम का। ग्राम के प्रधान श्री रामसुमेर जी साथ ही बैठे थे। हम सभी में उस मंदिर के दर्शन की उत्कंठा बढ़ती ही जा रही थी। भोजन आदि के बाद आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण कर हम लोग बढ़ चले कोटरा गांव की तरफ।
 रामसुमेर जी मोटरसाइकिल पर थे और उनके पीछे चारपहिया वाहन पर हम लोग। कुछ ही देर में हम सभी कोटरा के मुरलीधर मन्दिर के समक्ष थे। लम्बी सी जीर्ण शीर्ण चाहरदीवारी, टूटा फूटा मुख्य द्वार। हालांकि गेरुए, सफेद रंग से हुई ताजी पुताई काफी हद तक बदहाली को छुपाने का प्रयास कर रही थी। सच कहूं तो पुराने खंडहर जैसा ही कुछ भान हो रहा था। चाहरदीवारी के बाहर कुछ समाधियों के भग्नावशेष हमारी और हमारी सरकारों की जिम्मेदारियों की एक बानगी सुना रही थीं। खैर...
     लोगों ने बताया कि यह एक अति प्राचीन मंदिर है। इसे ध्वस्त करने का असफल प्रयास औरंगजेब के द्वारा किया गया था। लोकमान्यता तो यह भी है कि इसी मंदिर में गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत समय तक रहे तथा उनकी हस्तलिखित कृति बहुत समय तक यहां रखी हुई थी। समय के प्रवाह में उस दुर्लभ धरोहर को रक्षित न किया जा सका। वर्तमान में उसके प्रतिरूप के तौर पर मुद्रित रामचरित मानस की एक पुरानी फटेहाल प्रति लाल कपड़े में पोटली की तरह बांध कर रखी हुई है। हालांकि इन मान्यताओं के ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्य अलग चर्चा और शोध के विषय हैं। खैर...
        हम सभी ने पूरी श्रद्धा से मन्दिर में प्रवेश किया। सामने ही एक बड़ा सा कुंआ था, जिसपर किसी ने 'जै गंगा मइया' लिखा हुआ था। पूछने पर पता चला कि वर्षों पहले मां गंगा स्वयं ही वहां थीं और मान्यता है कि उस कुंए में मां गंगा का ही जल है। आज भी कार्तिक पूर्णिमा के सुअवसर पर वहां बहुत बड़ा मेला लगता है और सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आकर कुंए के जल से स्नान करते हैं। हमने भी कुंए से जल निकाला और उस शीतल जल को माथे से लगाया। ततपश्चात मन्दिर के मुख्य भवन में हम सभी ने प्रवेश किया। जिसपर सामान्य से हस्तलेख से किसी ने 'श्री मुरलीधर' लिख रखा था। बाईँ तरफ ही मानस की मुद्रित प्रति रखी हुई थी जिसका जिक्र मैं पूर्व में कर चुका हूं। इसके आगे एक छोटा सा द्वार और था जिसमें प्रवेश कर हम बरामदे में आये। बाईँ तरफ छोटे से मन्दिर में एक शिवलिंग था और उसके बगल में बहुत छोटा सा झरोखानुमा द्वार, जिस पर लिखा था ' जय माँ गंगा द्वार'। लोगों ने बताया कि यहीं से एक गुप्त रास्ता जमीन के भीतर से होता हुआ बाहर स्थित कुंए तक गया है। लेकिन आजतक किसी ने भी इसमें प्रवेश करने का साहस नही दिखाया। मैंने झांक कर देखा तो सुरंगनुमा एक अंध कूप सा महसूस तो हुआ लेकिन समयाभाव और भय मिश्रित मनोदशा से प्रणाम करके बाहर आना ही मुनासिब लगा।
 अब हम बरामदा पार करके एक कक्ष में प्रवेश कर रहे थे। मन्दिर का बायां हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। दीवारें फट चुकी हैं। उस कक्ष की छत गुम्बदनुमा थी, सुंदर सी नक्काशी भी उकेरी हुई थी लेकिन बाईँ तरफ की दीवार तो दीवार, ऊपर तक छत भी फ़टी हुई थी। सामने ही मन्दिर का मुख्य कक्ष था और सफेद सँगमरमर की राधा कृष्ण की मोहक मूर्ति थी। अनके प्रकार के शंख आदि भी सीढ़ियों पर रखे हुए थे। हम सबने श्रद्धापूर्वक दर्शन किये, भगवान को भोग चढ़ाया। बाईँ तरफ छोटा सा पुराना एक दरवाजा लगा था। पता चला कि उसके भीतर सीढियां हैं जो पीछे स्थित ऊंचे से गुम्बद में ऊपर बने हुए कक्ष तक जाती हैं। चूंकि देर हो रही थी और हमें अभी माखी गांव स्थित टीकादस हनुमान जी के दर्शन भी करने थे अतः हमलोगों ने सीढ़ियों से ऊपर जाने का विचार त्याग दिया। मन्दिर के पीछे के हिस्से से वो ऊंचा सा गुम्बद स्प्ष्ट दिख रहा था ऐसा लग रहा था मानो वह अपनी भव्यता और प्राचीनता पर इठलाता हुआ शीश ताने खड़ा है। 
दर्शन करके लौट तो आये हम सभी लेकिन मस्तिष्क में यह प्रश्न अभी भी कौंध रहा है कि हम और हमारी सरकारें अपनी पुरातन सम्पदा के प्रति और जागरूक क्यों नही हो रहे। क्या पूर्वजों की इन धरोहरों को रक्षित करने के प्रयास सरकारों द्वारा किये जायेंगे ?? निश्चित रूप से किये जाने चाहिये इसलिये उत्तर प्रदेश सरकार से मेरा इतना ही कहना है कि उन्नाव जनपद में कोटरा स्थित श्री मुरलीधर धाम आपकी बाट जोह रहा है। 
                                                      ✍️ डॉ पवन मिश्र















Monday, 18 March 2019

दोहे- चौकीदार

2019 के पूर्वार्द्ध के राजनैतिक परिदृश्य के सम्बंध में-

चोरों की तो मौज थी, कुछ दिन पहले यार।
आया चौकीदार तो, देखो चोर फरार।१।

बाहर भी बेचैन हैं, जो थे चोर फरार।
लंदन तक दौड़ा रहा, अपना चौकीदार।२।

नए नए प्यादे दिखे, करते अत्याचार।
*पंजा* हमें दिखा रहे, जाति के ठेकेदार।३।

दादी की पोती कहे, देखो मेरी नाक।
सुन कर चिल्लाने लगे, कांव कांव सब काक।४।

उनका अपना शोध है, जो आई ये बात।
वंश पूजकों को दिया, नाक भरी सौगात।५।

चोरों में हड़कंप है, यह तो दिखता साफ।
समय दिखायेगा इन्हें, जनता का इंसाफ।६।

गठबंधन की चाह में, कजरी है बीमार।
आमादा गू हेतु ज्यों, शूकर कोई यार।७।

उस बबुआ अकलेस का, हुआ हाल बेहाल।
बाप अलग रेले पड़ा, चाचा भी हैं लाल।८।

कुंभ नहाते फिर रहे, जो थे रोजेदार।
राजनीति के मायने, बदले चौकीदार।९।

पपुआ ममता केजरी, सारें हैं बेकार।
इन सबसे इक्कीस है, अपना चौकीदार।१०।

बक बक कोरी त्याग कर, आये कोई वीर।
खुद में हो गर शक्ति तो, खींचें बड़ी लकीर।११।

नहीं दूध का है धुला, माना चौकीदार।
लेकिन जितने पात्र हैं, ये सबसे दमदार।१२।

दीपक के बिन रात में, कैसे हो उजियार।
राह तक रहा आपकी, कब से चौकीदार।१३।

भक्त कहो या तुम कहो, मुझको चौकीदार।
लोकतंत्र के पर्व हित, मैं बैठा तैयार।१४।

अब बारी है आपकी, कर लो सोच विचार।
कैसा हो इस देश का, अगला चौकीदार।१५।
                   
                              ✍️ डॉ पवन मिश्र

#MainBhiChowkidar

Sunday, 17 March 2019

दोहे- मैं भी चौकीदार


आई निर्णय की घड़ी, होने लगे विचार।
बोल रहे समवेत सब, *मैं भी चौकीदार*।१।

चोरों के कुल में सुनो, मचता हाहाकार।
हर घर जब कहने लगा, *मैं भी चौकीदार*।२।

बूढ़ा हो या हो युवा, कहता है ललकार।
चोरों की ना ख़ैर अब, *मैं भी चौकीदार*।३।

लोकतंत्र के पर्व में,  देश प्रेम का ज्वार।
गली गली में शोर है, *मैं भी चौकीदार* ।४।

गलबहियां करने लगे, शूकर श्वान सियार।
हर मनु जब कहने लगा, *मैं भी चौकीदार* ।५।

खुशियों की सौगात है, होली का त्यौहार।
फागुन का झोंका कहे, *मैं भी चौकीदार*।६।

                              ✍️ *डॉ पवन मिश्र*
#MainBhiChowkidar

Sunday, 10 March 2019

ग़ज़ल- ज़ुबां कुछ भी नही कहती मगर वो जान लेते हैं



ज़ुबां कुछ भी नही कहती मगर वो जान लेते हैं।
हमारे दिल की बेताबी को वो पहचान लेते हैं।।

बताओ किस तरह उनकी मुहब्बत का करूँ चर्चा।
मुझे ही प्यार करते हैं मेरी ही जान लेते हैं।।

अजब दुनिया मुहब्बत की अजब दस्तूर हैं इसके।
दिवाने दिल मुहब्बत को खुदा ही मान लेते हैं।।

जरा सी आग दिखलाकर डराओगे हमें कैसे ?
निगल जाते हैं सूरज भी अगर हम ठान लेते हैं।।

दगा क्या है वफ़ा क्या है उसी ने तो बताया है।
हम अपनी पीठ पर ख़ंजर का ये एहसान लेते हैं।।
                                     
                                   ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday, 3 February 2019

ग़ज़ल- कज़ा से चंद सांसें मांगती है



कज़ा से चंद सांसें मांगती है।
अजब से मोड़ पर ये जिंदगी है।।

खुदा हर शय के भीतर है अगर तो।
भटकता दर ब दर क्यूँ आदमी है।।

फ़रिश्ता चढ़ गया सूली पे हँसकर।
सदाकत की उसे कीमत मिली है।।

ख़ुदा रखना सलामत बागबां को।
गुलों ने आज ये फरियाद की है।।

अलग आदाब हैं महफ़िल में तेरी।
मुझे उलझन सी अब होने लगी है।।

ये खंज़र पीठ में पैवस्त है जो।
किसी अपने की ही साजिश हुई है।।

                   ✍ *डॉ पवन मिश्र*

सदाकत= सच्चाई
आदाब= तौर-तरीके

ग़ज़ल- मेरे कमरे में भी इक चांदनी है



तेरे दीदार की लत हो गई है।
नहीं बुझती ये कैसी तिश्नगी है।।

उजालों से नहाता आजकल हूँ।
मेरे कमरे में भी इक चाँदनी है।।

तुम्ही तुम बस नजर आते हो मुझको।
खुदाया कैसी ये जादूगरी है।।

बहुत दुश्वार है राहे मुहब्बत।
मगर ये आशिकी जिद पे अड़ी है।।

नही दिखती कोई सूरत शिफ़ा की।
खुदा ये आशिकी जब से हुई है।।

किसी दीवाने का कमरा है शायद।
यहां की ख़ामुशी भी चीखती है।।

मुहब्बत ने यही बख़्शा पवन को।
तुम्हारी याद है और शाइरी है।।

              ✍ *डॉ पवन मिश्र*

शिफ़ा= रोगमुक्ति

Monday, 21 January 2019

दोहे- अवसरवादी राजनैतिक गठजोड़ के संदर्भ में



सत्ता की ही भूख है, सत्ता की ही प्यास।
कुत्ते सब जुटने लगे, हड्डी की ले आस।१।

मौसेरे भाई मिले, होने लगे करार।
हुवाँ हुवाँ करने लगे, मिलकर सभी सियार।२।

चोरों की बारात में, बुआ भतीजा साथ।
अवसरवादी भेड़िये, मिला रहे हैं हाथ ।३।

राजनीति के मंच पर, नंगा करता नाच।
भीड़ बजाए तालियां, खुश हो अर्थ पिशाच।४।

दल से दल मिलने लगे, दलदल हुआ विराट।
सबने मिलकर खड़ी की, लोकतंत्र की खाट।५।

                                ✍ डॉ पवन मिश्र


Monday, 14 January 2019

दोहे- उत्तर प्रदेश के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर



बैंगन को भी मात दे, राजनीति का ढंग।
लाल मिला नीला मिला, बना बैंगनी रंग।१।

राजनीति के व्योम में, मियां मुलायम अस्त।
बुआ भतीजा मिल गए, चचा पड़ गए पस्त।२।

गलबहियां करने लगे, जो बैठे थे रूठ।
अवसरवादी स्वांग है, सच मानो या झूठ।३।

कल तक साथी हाथ के, हाथी पकड़े आज।
राजनीति के खेल में, गहरे होते राज।४।

कुत्सित इनकी सोच है, कुत्सित इनके कृत्य।
आगे आगे देखिये, होंगें कितने नृत्य।५।

                          ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday, 13 January 2019

ग़ज़ल- बारहा इश्क़ में करार न कर



बारहा इश्क़ में करार न कर।
ऐसी गलती तू बार बार न कर।।

लाखों गम इश्क़ के अलावा हैं।
ज़िन्दगी और बेक़रार न कर।।

है मुहब्बत अगर तो आएगा।
ऐ मेरे दिल तू इंतजार न कर।।

दिल मेरा रेशमी गलीचे सा।
इसको धोखे से तार तार न कर।।

हद जरूरी बहुत है रिश्तों में।
हद के आगे किसी से प्यार न कर।।

ज़ख्म आंसू सबक़ मुहब्बत के।
दर्द का ऐसा कारोबार न कर।।

माना कड़वा हूँ, नीम हूँ लेकिन।
मुझको ऐसे तो दरकिनार न कर।।

ख़ाक होकर ही ये पवन समझा।
हुस्न वालों पे जाँ निसार न कर।।

              ✍ *डॉ पवन मिश्र*

बारहा= अक्सर, बारम्बार