Wednesday, 30 September 2015

ग़ज़ल- दूर से ही सब निशाने हो गए


दूर से ही सब निशाने हो गए।
इश्क के कितने बहाने हो गए।।

हर सितम हमको तेरा मंजूर है।
आशिकी में हम दीवाने हो गए।।

दूसरों के घर बुझाते जब जले।
धीरे धीरे हम सयाने हो गए।।

माँ का आँचल याद आता है बहुत।
चैन से सोये जमाने हो गए।।

साजिशें सारी समझता है "पवन"।
ये तरीके तो पुराने हो गए।।

              - डॉ पवन मिश्र

Sunday, 27 September 2015

प्रमाणिका छन्द- चलो चले प्रकाश में

~प्रमाणिका छन्द~

चलो चले प्रकाश में।
नवीन दृश्य आश में।।

निशा प्रमाण खो गया।
नया विहान हो गया।।

लता खिली बहार से।
गुलों समेत प्यार से।।

प्रभो सुनो पुकार है।
यही सदा विचार है।।

न द्वेष हो कभी यहां।
न क्लेश हो कभी यहां।।

रहें सभी लगाव से।
बढ़े चले प्रभाव से।।

घनी भले निशा मिले।
निराश भाव ना खिले।।

प्रकाश पुंज संपदा।
दिया जला रहे सदा।।

     -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- लघु गुरु की चार आवृत्ति (1 2×4)

जीवन खुशियों का दर्पण हो


जीवन खुशियों का दर्पण हो,
सबको खुशियाँ ही अर्पण हो।
सब प्रीत करें अंतर्मन से,
रिश्तों में मौन समर्पण हो।।
                 जीवन खुशियों का दर्पण हो,
                 सबको खुशियाँ ही अर्पण हो।
अधरों पर झूठ कभी ना हो,
पलकों पर नीर कभी ना हो।
जीवंत जियें हर नर नारी,
नैराश्य भाव का तर्पण हो।।
                 जीवन खुशियों का दर्पण हो,
                 सबको खुशियाँ ही अर्पण हो।
कोमल फूलों को सम्बल हो,
भँवरों का गुंजन प्रतिपल हो।
काँटों का उद्भव रुक जाये,
बस पुष्पों का आकर्षण हो।।
                जीवन खुशियों का दर्पण हो,
                सबको खुशियाँ ही अर्पण हो।
                   
                            -डॉ पवन मिश्र
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Thursday, 24 September 2015

ग़ज़ल- सौ बहानों से वो


सौ बहानो से वो आजमाने लगे।
जाने क्यों आज नज़रे चुराने लगे।।

दिल की गहराइयों से था चाहा जिसे।
आज जब वो मिले तो बेगाने लगे।।

मखमली रातों की याद भी अब नहीँ।
जाने क्या हो गया सब भुलाने लगे।।

साथ मंजिल तलक आपको आना था।
इक फ़क़त मोड़ पे लड़खड़ाने लगे।।

भूल कर सारे वादों इरादों को वो।
गैर की बाँहों में मुस्कुराने लगे।।

कल तलक रूठ कर मान जाते थे जो।
आज हो कर खफ़ा दूर जाने लगे।।

वो नहीं साथ है फिर भी हम हैं वहीं।
उनकी यादों से खुद को सताने लगे।।

जो भी मजबूरियां हों मुबारक उन्हें।
इश्क के कायदे हम निभाने लगे।।

अब क़ज़ा आये या हो कोई भी सज़ा।
टूटे दिल में उन्ही को सजाने लगे।।

                            -डॉ पवन मिश्र
क़ज़ा= मौत

Wednesday, 23 September 2015

मनहरण घनाक्षरी छन्द- वन्दे मातरम्


गीत है यह प्राण का विजय के प्रमाण का।
भारतीय मान का ये गान वन्दे मातरम् ।।

क्रान्तिकारियों की शान देश का नव विहान।
आश की किरण का ये गान वन्दे मातरम्।।

जो शोषितों को मान दे औ निर्बलों को प्राण दे।
ऐसा देवताओं सा ये गान वन्दे मातरम्।।

कोई शस्त्र हो समक्ष चाहे मृत्यु हो प्रत्यक्ष।
श्वास फिर भी गाये ये गान वन्दे मातरम् ।।

                                  -डॉ पवन मिश्र

मनहरण घनाक्षरी छन्द- आठ, आठ, आठ, सात पर यति वाला वार्णिक छन्द।

Tuesday, 22 September 2015

दुर्मिल सवैया- निज स्वार्थ तजो


निज स्वार्थ तजो यह ध्यान रहे।
यह धर्म सनातन भान रहे।।

इक सत्य यही बस अंतस में।
निज देश कला पर मान रहे।।

कटुता सबकी मिट जाय प्रभो
मनु हैं इसका अभिमान रहे।।

करबद्ध निवेदन है इतना।
यह भारत देश महान रहे।।

               -डॉ पवन मिश्र

दुर्मिल सवैया छंद- आठ सगण अर्थात् 112×8 मात्रा युक्त सममात्रिक छन्द

Monday, 21 September 2015

ग़ज़ल- तुम अगर साथ दो


तुम अगर साथ दो सब सँभल जायेगा।
एक पल में ही मंजर बदल जायेगा।।

छुप के देखो न तुम, रेशमी ओट से।
मिल गई जो नज़र, दिल मचल जायेगा।।

रुक सको तो रुको, महफिले शाम में
है परेशां बहुत, मन बहल जायेगा।।

दिल परेशान है, धड़कनें बावली।
तेरे ज़ानों पे हर गम पिघल जायेगा।।

नर्म सांसो को आहों से, रखना जुदा।
ये भड़क जो गयीं, तन उबल जायेगा।।

बेरुखी से तुम्हारी दीवाना तेरा।
हाथ से रेत जैसा फिसल जायेगा।।

हूँ परेशां मगर साथ उम्मीद भी।
ये भी इक दौर है जो निकल जायेगा।।

शब्द बिखरे पड़े है पवन के यहाँ।
गुनगुना दो तो कह के ग़ज़ल जाएगा।।
                         
                           - डॉ पवन मिश्र
ज़ानों= गोद

Saturday, 19 September 2015

ग़ज़ल- बात करने के बहाने हो गए


छेड़ कर दिल को हमारे वो गए।
बात करने के बहाने हो गए।।

इक फ़क़त दीदार उनका क्या मिला।
होश से हम हाथ अपने धो गए।।

नक्शे पा पे चल पड़े हैं आपके।
आप मेरे रहनुमा जो हो गए।।

ढूंढ पाना खुद को अब मुमकिन नहीं।
आपके इदराक में हम खो गए।।

सांस वो होगी हमारी आखिरी।
गर जुदा अब आप हमसे हो गए।।

                   -डॉ पवन मिश्र

नक्शे पा= पैरों/कदमों के निशान
इदराक= सोच

Friday, 18 September 2015

हरिगीतिका छन्द- हे प्राणप्यारी प्रियतमा


हे प्राण प्यारी प्रियतमा तुम, शान्त क्यों कुछ तो कहो।
मन के सभी संताप छोड़ो, स्वप्न-नव उर में गहो।
जब हूं सदा मैं साथ तेरे, संकटों से क्यूं डरो।
जो नीर पलकों पर धरे हैं, व्यर्थ मत इनको करो।

माना तिमिर गहरा घना है, धीर थोड़ा तुम धरो।
आगे खुला आकाश सारा, आस धूमिल मत करो।
आरम्भ ही तो है अभी यह, डगमगाना क्यों अहो।
विश्वास ही सम्बल परम है, धार में आगे बहो।

                                          - डॉ पवन मिश्र

*हरिगीतिका चार चरणों का सममात्रिक छंद  होता है।16 व 12 के विराम के साथ प्रत्येक चरण में 28 मात्राओं तथा अंत में लघु व गुरु की अनिवार्यता होती है।

Wednesday, 16 September 2015

ग़ज़ल- वो गए तो हमे याद आती रही

वो गए तो हमे याद आती रही।
रात काली उन्हें भी डराती रही।।

ख्वाब बेचैन थे नींद थी ही नहीं।
आप आये नहीं याद आती रही।।

रात में चाँद के साथ हम हो लिए।
चांदनी तेरे किस्से सुनाती रही।।

रात में बेकली किस कदर थी उन्हें।
सिलवटें चादरों की बताती रही।।
                   
होठ को शबनमी बूँद से क्या मिला।
खुद जली और हमको जलाती रही।।

पलकों की कोर पे सूखे मोती लिए।
सुर्ख़ मेहंदी हमें वो दिखाती रही।।
                 

                        -डॉ पवन मिश्र

Monday, 14 September 2015

कुछ दोहे- हिंदी भाषा के सन्दर्भ में

                   
हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।
देवतुल्य पूजन करो, मातु पिता सम मान।। (1)

दुर्दिन जो हैं दिख रहे, उनके कारण कौन।
सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।। (2)

ठूंठ बनी हिन्दी खड़ी, धरा लई है खींच।
गूंगे बनकर बोलते, देंखें आँखिन मींच।। (3)

सरकारी अनुदान में, हिन्दी को बइठाय।
अँग्रेजी प्लानिंग करें, ग्रोथ कहाँ से आय।। (4)

जब सोंचे हिन्दी सभी, हिन्दी में हो काम।
हिन्दी में ही बात हो, भली करेंगे राम।। (5)

                                  - डॉ पवन मिश्र