Sunday 26 February 2017

ग़ज़ल- सिखा रहा चुनाव ये


मुफ़लिसों के चूल्हे भी जला रहा चुनाव ये।
बस्तियों में आग भी लगा रहा चुनाव ये।।

तिश्नगी में तख़्त के बदल रहे समीकरण।
दो ध्रुवों को देख लो मिला रहा चुनाव ये।।

अर्श वाले आ गये हैं वोट लेने फर्श पर।
गैरफ़ानी कुछ नहीं बता रहा चुनाव ये।।

मुन्कसिर वो हो गए जो चूर थे गुरूर में।
जाने क्या क्या और भी सिखा रहा चुनाव ये।।

अब गलेगी दाल यूँ न जातियों के नाम पर।
रहनुमा को आइना दिखा रहा चुनाव ये।।

                                   - डॉ पवन मिश्र

मुफ़लिस= गरीब          गैरफ़ानी= शाश्वत
मुन्कसिर= नम्र             रहनुमा= नेता

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