Saturday 13 July 2019

मुक्तक- राधा का प्रेम


कृष्ण का साथ रनिवास कुछ ना लिया,
द्वारिका के महल का न तिनका लिया।
मांग में लालिमा भी न ली कृष्ण से,
राधिका ने मगर कृष्ण को पा लिया।१।

त्याग की मूर्ति थी त्याग उसने किया,
प्रेम का सब हलाहल स्वयं पी लिया।
प्रेम पथ के पथिक तो बहुत हैं मगर,
प्रीति की रीति को राधिका ने जिया।२।

पावनी गंग है एक आम्नाय है,
राधिका प्रेम का एक पर्याय है।
ग्रन्थ माना वृहद है मगर राधिका,
कृष्ण लीला का स्वर्णिम अध्याय है।३।
(आम्नाय= पवित्र प्रथा/रीति)

विश्व को जीवनी सभ्यता दे गए,
प्रेम की इक अनूठी कथा दे गए।
विरह में अश्रु भी मुस्कुराने लगे,
राधिका-कृष्ण ऐसी प्रथा दे गए।४।

                           ✍️ डॉ पवन मिश्र

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