Monday 5 October 2020

ग़ज़ल- चंदन जैसे शीतल हो क्या


चंदन जैसे शीतल हो क्या
या पावन गंगाजल हो क्या

कब तक छाँव रखोगे मुझपर
मेरी माँ का आँचल हो क्या

नगर-नगर फिरते रहते हो
आवारा इक बादल हो क्या

प्रेम जिसे कहती है दुनिया
तुम भी उससे घायल हो क्या

दुनिया से टकराओगे तुम?
मेरे जैसे पागल हो क्या??

सांसों को महका जाते हो
पुरवाई हो? संदल हो क्या??

             ✍️ डॉ पवन मिश्र

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