Tuesday 5 January 2021

ग़ज़ल- अपने होठों पे प्यास रहने दो


अपने होठों पे प्यास रहने दो

मीठे दरिया की आस रहने दो


मेरे साकी को पास रहने दो

हाथ में इक गिलास रहने दो


दर्द के सब असास रहने दो

बस यहीं आस-पास रहने दो


कुछ तो ख़ौफ़-ओ-हिरास रहने दो

टूटे दिल को उदास रहने दो


बेमज़ा हर खुशी बिना उनके

अब मुझे ग़म-शनास रहने दो


क्यूं कसैला बना रहे रिश्ता

थोड़ी सी तो मिठास रहने दो


हर किसी से करो न जिक्र मेरा

ख़ास रिश्ते को ख़ास रहने दो


बदहवासी में जी रहा हूँ मैं

उनको भी बे-हवास रहने दो


तीरगी से छिड़ी है जंग मेरी

हर दिया पास पास रहने दो


             ✍️ डॉ पवन मिश्र

असास= सामान

हिरास= निराशा

ग़म-शनास= दुःख को जानने वाला

बे-हवास= चेतना शून्य

तीरगी= अंधकार

No comments:

Post a Comment