Saturday 17 December 2022

गीत- हे प्रिये! जबसे मिले हो

 गीत

हे प्रिये! जबसे मिले हो मिट गया संत्रास हिय का।

क्या कहूँ निर्जीव तन में श्वास कितनी भर गए हो।।

मौन अधरों पर रखा है,

किंतु धड़कन गा रही है।

गन्ध कैसी दे गए जो,

हिय कुसुम महका रही है।

स्वाति बूंदें झर रहीं अब,

सीप मोती भर रहीं अब।

इक छुवन से इस हृदय के तार झंकृत कर गए हो।

क्या कहूँ निर्जीव तन में श्वास कितनी भर गए हो।।

हे प्रिये! जबसे मिले हो....

हार बाहों का पहनकर,

रात भी इठला रही है।

और बस अवगुम्फनों में,

दास बन मुस्का रही है।

शशि किरन का रूप धरकर,

इस चकोरे पर हुलसकर।

स्वप्न में आ एक चुम्बन भाल पर जो धर गए हो।

क्या कहूँ निर्जीव तन में श्वास कितनी भर गए हो।।

हे प्रिये! जबसे मिले हो....

चाहती है प्रीति मेरी,

तुम इसे अपना बना लो।

डोलती है नाव डगमग,

अब इसे तुम ही सँभालो।

ले चलो मुझको किनारे,

दूर तक अपने सहारे।

या कि कह दो इस जहां के बंधनों से डर गए हो।

क्या कहूँ निर्जीव तन में श्वास कितनी भर गए हो।।

हे प्रिये! जबसे मिले हो....


✍️ डॉ पवन मिश्र


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