Sunday 9 July 2023

ग़ज़ल- ईंट-गारा बचा मकानों में

ईंट-गारा बचा मकानों में
और क्या रह गया मकानों में

जबसे बच्चे बड़े हुए तब से
छोटा आंगन हुआ मकानों में

सबने ऊंची बना लीं दीवारें
कैसे आये सदा मकानों में

खुद के भीतर न झांक पाए और
ढूंढते हैं ख़ुदा मकानों में

उनको फुर्सत न थी ज़माने से
मैं भी उलझा रहा मकानों में

सारे रिश्ते गँवा के जाना है
कुछ नहीं है रखा मकानों में

कुछ दरिंदों ने नोंच ली कलियां
देश सोता रहा मकानों में

✍️ डॉ पवन मिश्र

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