Sunday 6 August 2023

ग़ज़ल- आया तो क्या

साथ लेकर यार बाद-ए-नौ-बहार आया तो क्या

टूटने को सांस थी तब ग़म-गुसार आया तो क्या


जान ही बाकी नहीं जब जाँ-निसार आया तो क्या

जल गया गुलशन तो फिर अब्र-ए-बहार आया तो क्या


दफ़्न कर दीं आरजू सब दर से उनके लौट कर

बाद मेरे उनको मुझपे एतिबार आया तो क्या


क्या जरूरी है सभी को इश्क़ में मंजिल मिले

मेरे हिस्से में फ़कत ये इंतिज़ार आया तो क्या


अब भला आए हो क्यों तुम हाल मेरा पूछने

घुट गईं जब चाहतें तब इख़्तियार आया तो क्या


जब अदब है ही तअस्सुर ढाल देना हर्फ़ में

गीत-ग़ज़लों में मेरे फिर ज़िक्र-ए-यार आया तो क्या


उम्र भर मिलने न आया इक दफ़ा भी वो पवन

कब्र पे फिर फूल लेकर बार बार आया तो क्या


✍️ डॉ पवन मिश्र


बाद-ए-नौ-बहार- बसन्त ऋतु की शीतल सुगन्धित हवा

ग़म-गुसार- सहानुभूति प्रकट करने वाला

जाँ-निसार- प्राण न्यौछावर करने वाला

अब्र-ए-बहार- बसन्त ऋतु का मेघ

इख़्तियार- अधिकार क्षेत्र, नियंत्रण

अदब- साहित्य

तअस्सुर- मनोभाव

हर्फ़- शब्द




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