Sunday 13 January 2019

ग़ज़ल- बारहा इश्क़ में करार न कर



बारहा इश्क़ में करार न कर।
ऐसी गलती तू बार बार न कर।।

लाखों गम इश्क़ के अलावा हैं।
ज़िन्दगी और बेक़रार न कर।।

है मुहब्बत अगर तो आएगा।
ऐ मेरे दिल तू इंतजार न कर।।

दिल मेरा रेशमी गलीचे सा।
इसको धोखे से तार तार न कर।।

हद जरूरी बहुत है रिश्तों में।
हद के आगे किसी से प्यार न कर।।

ज़ख्म आंसू सबक़ मुहब्बत के।
दर्द का ऐसा कारोबार न कर।।

माना कड़वा हूँ, नीम हूँ लेकिन।
मुझको ऐसे तो दरकिनार न कर।।

ख़ाक होकर ही ये पवन समझा।
हुस्न वालों पे जाँ निसार न कर।।

              ✍ *डॉ पवन मिश्र*

बारहा= अक्सर, बारम्बार

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