Sunday 12 February 2023

ग़ज़ल- तुम्हारे नाम मैं अपनी जवानी कर नहीं पाया

तुम्हारे नाम मैं अपनी जवानी कर नहीं पाया

मैं मीरा की तरह खुद को दीवानी कर नहीं पाया


वो मेरी ख़ामुशी की तर्जुमानी कर नहीं पाया

बहुत मजबूर मैं भी था ज़बानी कर नहीं पाया


यही अफ़सोस मुझको उम्र भर होगा मेरी जानां

तुम्हारी राह में मैं गुल-फ़िशानी कर नहीं पाया


बड़ी खुशियां थीं दामन में मगर कुछ दिन ही बस ठहरीं

सलीके से मैं शायद मेज़बानी कर नहीं पाया


नये रिश्ते नई बातों में ही उलझा रहा केवल

वो मुझ सँग बैठकर बातें पुरानी कर नहीं पाया


कभी तो लौट कर आएगा वो फिर से पनाहों में

इसी उम्मीद से नक़्ल-ए-मकानी कर नहीं पाया


यही अफ़सोस मुझको उम्र भर होगा मेरी जानां

हमारे वाक़ये को मैं कहानी कर नहीं पाया


✍️ डॉ पवन मिश्र


तर्जुमानी= अनुवाद

गुल-फ़िशानी= फूल बिखराना

नक़्ल-ए-मकानी= कहीं और बस जाना/चले जाना


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