Sunday 12 February 2023

ग़ज़ल- विचारों को युवा गर जाफ़रानी कर नहीं पाया

विचारों को युवा गर जाफ़रानी कर नहीं पाया

तो समझो फिर जवानी को जवानी कर नहीं पाया


वो इक दफ़्तर का बाबू चाय-पानी कर नहीं पाया

अधूरी फाइलों पर मेहरबानी कर नहीं पाया


कई हल थे इशारों में जो कातिब ने किए दिन भर

वो फरियादी मगर कुछ तर्जुमानी कर नहीं पाया


खपा डाला बदन अपना, पसीने से बहुत सींचा

मगर मुफ़लिस बिचारा खेत धानी कर नहीं पाया


रदीफ़-ओ-काफ़िया-ओ-बह्र शायद जोड़ लेता हूँ

मगर लगता है अब तक शेर-ख़्वानी कर नहीं पाया


✍️ डॉ पवन मिश्र


जाफ़रानी= केसरिया

कातिब= लिपिक, क्लर्क

तर्जुमानी= अनुवाद

मुफ़लिस= गरीब

शेर-ख़्वानी= शेर कहना

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