Tuesday 22 September 2015

दुर्मिल सवैया- निज स्वार्थ तजो


निज स्वार्थ तजो यह ध्यान रहे।
यह धर्म सनातन भान रहे।।

इक सत्य यही बस अंतस में।
निज देश कला पर मान रहे।।

कटुता सबकी मिट जाय प्रभो
मनु हैं इसका अभिमान रहे।।

करबद्ध निवेदन है इतना।
यह भारत देश महान रहे।।

               -डॉ पवन मिश्र

दुर्मिल सवैया छंद- आठ सगण अर्थात् 112×8 मात्रा युक्त सममात्रिक छन्द

No comments:

Post a Comment