Thursday 24 September 2015

ग़ज़ल- सौ बहानों से वो


सौ बहानो से वो आजमाने लगे।
जाने क्यों आज नज़रे चुराने लगे।।

दिल की गहराइयों से था चाहा जिसे।
आज जब वो मिले तो बेगाने लगे।।

मखमली रातों की याद भी अब नहीँ।
जाने क्या हो गया सब भुलाने लगे।।

साथ मंजिल तलक आपको आना था।
इक फ़क़त मोड़ पे लड़खड़ाने लगे।।

भूल कर सारे वादों इरादों को वो।
गैर की बाँहों में मुस्कुराने लगे।।

कल तलक रूठ कर मान जाते थे जो।
आज हो कर खफ़ा दूर जाने लगे।।

वो नहीं साथ है फिर भी हम हैं वहीं।
उनकी यादों से खुद को सताने लगे।।

जो भी मजबूरियां हों मुबारक उन्हें।
इश्क के कायदे हम निभाने लगे।।

अब क़ज़ा आये या हो कोई भी सज़ा।
टूटे दिल में उन्ही को सजाने लगे।।

                            -डॉ पवन मिश्र
क़ज़ा= मौत

1 comment:

  1. Wah.....
    Bro itni jaldi jaldi post daloge to sari poem khatam ho jayegi..

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