Sunday 21 August 2016

ग़ज़ल- आँख से हटता अगर परदा नहीं


आँख से हटता अगर परदा नहीं।
आईने में साफ़ कुछ दिखता नहीं।।

बेवफ़ा ही याद आता है इसे।
दिल मेरा मेरी सदा सुनता नहीं।।

आज भी तन्हा खड़ा हूँ मोड़ पर।
दूर तक वो रहनुमा दिखता नहीं।।

वक्त के हाथों अभी मज़बूर हूँ।
हौसला बेबस मगर मेरा नहीं।।

राहे मुश्किल आजमाएगी तुझे।
ऐ पवन सुन तू अभी घबरा नहीं।।

दफ़्न कर दो रंजिशें दिल की सभी।
इससे कुछ हासिल तुम्हें होगा नहीं।।

                          ✍ डॉ पवन मिश्र

सदा= आवाज



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