Saturday 17 December 2016

ग़ज़ल- उनकी आँखों में जब उभरता हूँ


उनकी आँखों में जब उभरता हूँ।
इस ज़माने को तब अखरता हूँ।।

आँधियाँ भी डिगा नहीं पाती।
जब कभी हद से मैं गुजरता हूँ।।

हाल दिल का बयां करूँ लेकिन।
उनकी रुसवाईयों से डरता हूँ।।

डूब जाये कहीं न फिर क़श्ती।
डरके साहिल पे ही ठहरता हूँ।।

जब भी आता हूँ तेरे कूचे में।
धड़कनें थाम के गुजरता हूँ।।

तेरी यादें कुरेद जाती हैं।
जख़्म जब भी मैं यार भरता हूँ।।

देखता हूँ जो चाँदनी रातें।
वो शबे वस्ल याद करता हूँ।।

मौत आई न जी रहा हूँ पवन।
रोज तिल तिल के यार मरता हूँ।।

                 ✍ डॉ पवन मिश्र

रुसवाईयाँ= बदनामियां
साहिल= किनारा
शबे वस्ल= मिलन की रात

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