Sunday 7 May 2017

ग़ज़ल- इक शमा रोशन करें


दरमियां बातों का फिर से सिलसिला रोशन करें।
आओ मिलकर इक घरौंदा प्यार का रोशन करें।।

रात गहरी है बहुत रानाइयाँ भी हैं ख़फ़ा।
जब तलक सूरज न आये इक शमा रोशन करें।।

दोष क़िस्मत पर लगाकर कोशिशें क्यूँ छोड़ना।
*इक दिया जब साथ छोड़े दूसरा रोशन करें*।।

ज़िंदगी की रहगुज़र में तीरगी ही तीरगी।
लौट आओ हमनशीं फिर रास्ता रोशन करें।।

कब तलक देखे सहम कर कश्तियों का डूबना।
थाम लें पतवार फिर से हौसला रोशन करें।।

गर हवा गुस्ताख़ है तो हम खड़े लेकर शमा।
वो बुझाये हर दफ़ा हम हर दफ़ा रोशन करें।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र
तीरगी= अंधेरा
*जफ़र गोरखपुरी साहब का मिसरा

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