Saturday 29 April 2017

ग़ज़ल- युँ दर्द अपना छुपा रहा था


युँ दर्द अपना छुपा रहा था।
हँसी लबों पे दिखा रहा था।।

छुपा के अश्कों की मोतियों को।
क्या हाल है क्या बता रहा था।।

वो जानता था हवा है बैरी।
*मगर दिये भी जला रहा था*।।

हमें दुआओं में करके शामिल।
वो इश्क़ हमसे निभा रहा था।।

चला गया जाने किस नगर में।
जो मेरी दुनिया बसा रहा था।।

मिटा दिया उसने खुद को लेकिन।
पवन को जीना सिखा रहा था।।

                      ✍ डॉ पवन मिश्र

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